बेंगलुरु में एक दर्दनाक घटना सामने आई है, जिसने समाज और परिवारिक रिश्तों पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। 27 वर्षीय शिल्पा पंचंगमत, जो कभी इंफोसिस में काम करती थीं, अपने ही घर में मृत पाई गईं। परिवार का आरोप है कि यह कोई आत्महत्या नहीं बल्कि हत्या है।
शादी और शुरुआती ज़िंदगी
शिल्पा की शादी दिसंबर 2022 में प्रवीण नामक युवक से हुई थी। प्रवीण पहले Oracle कंपनी में इंजीनियर थे लेकिन बाद में नौकरी छोड़कर पाणीपुरी का ठेला लगाने लगे। शादी को तीन साल पूरे होने वाले थे और दोनों का एक डेढ़ साल का बेटा भी है। जानकारी के मुताबिक, शिल्पा गर्भवती भी थीं।
परिवार का आरोप – आत्महत्या नहीं, हत्या
शिल्पा के चाचा चन्नबसैय्या का कहना है कि यह मामला सीधा-सीधा हत्या का है।
उनका आरोप है –
- "फैन के नीचे कोई स्टूल नहीं था। शिल्पा की ऊँचाई से वह फैन तक पहुँच ही नहीं सकती थीं।"
- "घटना वाले दिन प्रवीण घर से यह कहकर निकला कि वह बाहर जा रहा है, और बाद में खबर आई कि शिल्पा ने आत्महत्या कर ली। हमें पूरा शक है कि उसने हत्या कर भागने की कोशिश की।"
दहेज और पैसों की मांग
परिवार ने पुलिस को बताया कि शादी में करीब 35 लाख रुपये, 150 ग्राम सोना और कई घरेलू सामान दिए गए थे। इतना सब होने के बावजूद प्रवीण और उसकी मां शांतव्वा लगातार और पैसे की मांग करते रहे।
- हाल ही में प्रवीण ने अपने खाने-पीने के बिज़नेस के लिए 5 लाख रुपये की डिमांड की थी।
- जब पैसा समय पर नहीं मिला, तो शिल्पा को प्रताड़ित कर मायके भेज दिया गया।
- आखिरकार, माँ शारदा ने पैसे की व्यवस्था कर बेटी को ससुराल भेजा, लेकिन वहाँ हालात और बिगड़ते चले गए।
रंग-रूप को लेकर ताने
परिवार ने यह भी आरोप लगाया कि शिल्पा को उसके त्वचा के रंग को लेकर भी अपमानित किया जाता था।
उसकी सास का कहना था – "तुम काली हो, मेरे बेटे के लायक नहीं हो। उसे छोड़ दो, हम उसके लिए दूसरी लड़की ढूँढेंगे।"
ऐसे ताने और अपमानजनक बातें शिल्पा की मानसिक स्थिति पर गहरा असर डाल रही थीं।
पुलिस की कार्रवाई
पुलिस ने इस मामले में दहेज हत्या का केस दर्ज किया है।
एक अधिकारी ने कहा – "सभी आरोप फिलहाल परिवार की तरफ से लगाए गए हैं। मामले की गहन जांच की जा रही है। पति और अन्य लोगों से पूछताछ चल रही है।"
पोस्टमार्टम के बाद शिल्पा का शव परिवार को सौंप दिया गया है।
✍️मेरी राय
यह घटना केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं बल्कि समाज के लिए गहरी चेतावनी है। आज भी जब पढ़ी-लिखी, नौकरीपेशा महिलाएँ दहेज और रंगभेद की शिकार होती हैं, तो यह हमारी सोच की कमजोरी दिखाता है। शादी को अभी भी "लेन-देन" और "दिखावे" का सौदा मानने की मानसिकता कहीं न कहीं ऐसी मौतों की जिम्मेदार है।
समाज को यह समझना होगा कि औरत का मूल्य उसके रूप या दहेज से नहीं, बल्कि उसके व्यक्तित्व और इंसानियत से तय होता है। ऐसे मामलों में सख्त कानून तो ज़रूरी हैं, लेकिन उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है कि हम अपनी सोच और परंपराओं में बदलाव लाएँ।